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युवा पीढ़ी को ग्रामीण समाज से नफरत है क्यों?

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 अवधेश कुमार   समाजवाद क्या है? आज के युवा पीढ़ी ग्रामीण समाज से इतना नफरत क्यों करता है?  समाजवाद से मार्क्सवाद(साम्यवाद), मार्क्सवाद से लेलिनवाद, लेनिनवाद से स्टालिनवाद, स्टालिनवाद से माओवाद और माओवाद से नक्सलवाद इत्यादि समाजवाद की ही देन है। समाजवाद एक बहुत ही लंबी टर्म है इसकी व्याख्या सीमित  शब्दों में करना बहुत ही मुश्किल है।समाजवाद का प्रयोग विभिन्न विषयों में भिन्न-भिन्न प्रकार से किया गया है।जैसे राजनीतिक शास्त्र ,समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में इसका वर्णन अलग अलग अर्थों में किया गया है। भारत में समाजवाद का सामान्य अर्थ में परिभाषित करना हो तो प्राय: ग्रामीण समाज का उदाहरण दिया जाता है। जिसका तात्पर्य एक सामाजिक समूह या संगठन से होता है जोआपदा, विपत्ती, सुख-दुख को अपने साथ बांटते हैं। समाज के निर्माण में कुछ प्रमुख व्यक्ति होते हैं जिनके द्वारा समाज का निर्माण एवम् संचालन किया जाता है। वे लोग समाज चलाने के लिए नियम एवं कानून बनाते हैं जिन्हें सही मायने में समाजवाद का अर्थ एवं विचारधारा की समझ भी नहीं होती है।दुष्यंत कुमार की लिखी हुई ग़ज़ल वर्तमान ...

भारत रत्न : जननायक कर्पूरी ठाकुर एक समाजवादी नेता

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शिक्षा हमें स्वतंत्र व आत्मनिर्भर बनाती है। शिक्षा मनुष्य के अंदर अच्छे और आकर्षक गुणों का विकास करती है। शिक्षा लोगों को अंधविश्वास, भय और अज्ञानता से मुक्त करती है और उन्हें देश का वफादार और सच्चा नागरिक बनाती है। देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी। जी हां, बिल्कुल सही समझे, हम पिछड़ों-दबे-कुचलों के मसीहा बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर की बात कर रहे हैं जिन्हें लोकप्रियता के कारण उन्हें जननायक कहा जाता है। 24 जनवरी 2025 को कर्पूरी ठाकुर की बात 101वां जन्मदिवस है। जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक राजनीतिज्ञ और बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। नाई जाति में जन्म लेने वाले कर्पूरी ठाकुर सरल हृदय के राजनेता माने जाते थे। वे सामाजिक रूप से पिछड़ी जाति से जुड़े थे, लेकिन उन्होंने राजनीति को जनसेवा की भावना के साथ जिया था। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जननायक कहा जाता है। जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत रत्न पाने वाले 5 वें बिहारी हैं। इसके पहले ब...

अंग्रेज , इंग्लैंड का मूलनिवासी नही, बल्कि वो प्रवासी थे।

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मैं अवधेश कुमार, इस ब्लॉग के माध्यम से ब्रिटिश इतिहास पर फोकस किया हूं। जिस भारत में आर्य और मूलनिवासी में आर्य श्रेष्ठ है। उन्होंने अपने नाम पर भारत का नाम आर्यावर्त भी रखा। क्योंकि वो आदिवासियों और मूलनिवासियों से ज्यादा जागरूक और शिक्षित थे। शिक्षा कि यह ताकत है कि वह अपनी विचारों से किसी को बदलकर अपने जैसा बना सकता है। किसी भी व्यक्ति का मूल अस्तित्व के मिटा सकता है और उसे मानसिक गुलाम बना सकता है। बौद्धिक रूप से जागरूक व्यक्ति अपनी संस्कृति, धर्म, भाषा , जाति और विचारधारा को श्रेष्ठ बताकर किसी को भी MANIPULATE कर सकता है। अफ्रीका और अमेरिका के बारे मे तो सभी जानते हैं। क्योंकि संघर्ष चला हमे इतिहास में पढ़ने को मिल जाता हैं। इंगलैंड के मूलनिवासियों साथ कुछ ऐसा हुआ कि मानो किसी साप ने चूहा के बिल मे घुसकर उसका अस्तित्व के साथ साथ उसका नामो निशान मिटाकर वो प्रवासी ही मूलनिवासी बन गया। अतीत से वर्तमान तक यही साबित होता है कि साम्राज्य उसी का होता है जो ताकतवर होता है। जो कमजोर होता है उसका अस्तित्व मिट जाता है या मिटा दिया जाता है। ताकत का अभिप्राय राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सैन्य औ...

मधुशाला :- A Song of unity & humanity.

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डॉ हरिवंश राय बच्चन की कई प्रसिद्ध रचनाएं हैं, लेकिन उनकी प्रमुख रचना 'मधुशाला' है। 'मधुशाला' एक मशहूर कविता है जो उनके सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध काव्य-संग्रह "मधुशाला" में शामिल है। वह अँग्रेजी साहित्य के छात्र और प्रोफेसर रहे हैं l वे अपनी कविता मे Allogery का प्रयोग किये है हिन्दी मे जिसे हम द्विअर्थी कहते हैं। पहला तो साधारण अर्थ निकलता है और दूसरा उसका विशेष अथवा दार्शनिक अर्थ निकलता है। ये एक प्रगतिवादी कविता है प्रगतिवाद साहित्य में मार्क्सवाद का ही रूप माना जाता हैl दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला, ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला, कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को? शरणस्थल बनकर न  यदि अपना लेती मधुशाला।  उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से वो धर्म का खंडन करके इंसानियत का संदेश दे रहे है l मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, 'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला, अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ - 'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से वो बताना है कि हमार...

अखण्ड भारत का निर्माता - मौर्य सम्राट चक्रवर्ती अशोक महान

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मौर्य सम्राट अशोक के आर्दश, धर्म, लोकहित, लोकसेवा तथा धम्म की सम्पूर्ण विशेषताओं के साथ-साथ उसकी विजय, उसका शासन और कला प्रेम आदि सभी कुछ महान था । चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान मौर्य ने बौद्ध धर्म को अपनाया था। उन्होंने भारत में धर्म-निरपेक्षता एवं सामंजस्य की भावना को बढ़ावा दिया। उनके द्वारा निकाले गए शिलालेखों में उन्होंने अपने लोगों को शान्ति, अहिंसा, सम्मान एवं तुलनात्मक विश्वसन के महत्व के बारे में संदेश दिया था। सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 - ईसा पूर्व 232) को चन्द्रगुप्त और चाणक्य द्वारा निर्मित मजबूत राज्यव्यवस्था विरासत में मिली । जिसे सम्राट अशोक ने अपने शौर्य और नेतृत्व से शासन किया और देश का एकीकरण किया । कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक ने अंहिसा एंव जियो और जियो दो के सिध्दांत को अनुसरण करते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया । बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार विदेशो में कराया। अर्थात सम्राट अशोक शस्त्र और शास्त्र के सिद्धांत दोनो से जीता । भूभाग भी जीता लोगो का दिल भी जीता । अशोक की लोकतांत्रिक शासन पध्दति की छाप हमारे वर्तमान लोकतंत्र पर है । अशोक ने व्यापारिक मैत्रेय सम्बन्ध भी मधुर बनाये थे ...