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Showing posts with the label काव्य संग्रह

मानव तुम तो शाश्वत हो।

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निजी शिक्षक की व्यथा l

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मन की बात करने वाले से है मेरी गुजारिश,  वो तो कभी मेरे कल के बारे में करे विचार।  सरकारी उपेक्षा के सताये, दबाये व मारे है, बिमारीग्रस्त नहीं हुजूर हम है अर्थिक बीमार।  आज हम हो गए है कितना बेबस व लाचार।  लगता है ऐसा कि शिकारी का हो गया खुद शिकार।  कभी दूसरे को दिलाते थे नौकरी व रोजगार।  कैसा ये वक़्त आया है, हम ही हो गए बेरोजगार।  कोरोना वायरस ने सब कुछ छीन लिया हमारा , जैसे मान मर्यादा, रोजगार, सम्मान और पहचान।  स्कूल, कोचिंग, ट्यूशन सब बंद पड़े हैं मार्च से , विकट संकट में है हम सब शिक्षकों की जान।  होली के बाद से यु हीं दर बदर भटक रहे हैं हम, एक -एक रुपये कमाने के लिए हम है मोहताज।  खीर, पूरी, हलवा,मेवा मिष्ठान सब स्वप्न हो गई,  दाल भात भी न मिले रहीं है हमे खाने को आज।  पत्नि चिंतित, बच्चे रोये,माता-पिता है बेहाल,  मैं कहाँ जाऊँ किसको सुनाऊँ अपनी दीनता।  बैंक बैलेंस कब के खाली हो गए बुरा है हाल , शिक्षक की दुःख पर, सरकार को न कोई चिंता।   कब से बैठा हूँ करके शिक्षक पात्रता परीक्षा पास,  लेकिन अभी त...

कलम की ताकत

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कलम की ताकत के सामने, हमेशा घुटने टेकी है ये तलवारl कमियों को देख कर मैं तो बोलूंगा, R. T. I देता है मुझको  अधिकार l  मेरी तो है बस यही एकमात्र ईच्छा ,  मिले सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा l कमी किस में है सरकार या जनता में,   बुद्धिजीवियों करो इसकी समीक्षाl मजदूर या हो अफसर का संतान,  मिले शिक्षा सब को एक समान l  यह जगाती हमारे अंदर स्वाभिमान,   क्यों फेल है सर्व शिक्षा अभियान l पढ़ेंगे बढ़ेंगे बुराइयों पर जीतेंगे कभी,   इस बात पर तुम करो गहन विचार l जनतंत्र के अधिनायक है हम सभी, कभी भी ना समझना खुद को लाचारl कितना भी पढ़ो कभी ना होती पूरीl  इसके बिना तो है जीवन अधूरी l प्रत्येक प्राप्त करे इसे, ये हैं जरूरी l शिक्षा के आगे हारता है हर मजबूरी l रचनाकार :- अवधेश कुमार In front of the power of the pen, This sword is always kneeling. Seeing the inappropriate , I will say, RTI gives me the rights.   This is my only wish,  Everybody gets quality education. What is lacking in the government or public,   The intel...

तन में अभी जान बाकी है l

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अवधेश कुमार   शीर्षक :- बाकी है  --—----------------- मन में हौसला  व हिम्मत रख, तन में तो अभी जान बाकी है।  उम्मीद मत हार आशावादी बन ,  अभी पाने के लिए अरमान बाकी है।  इतनी जल्दी मत थक अभी , जीवन सख़्त इम्तहान बाकी है।  आराम से ना बैठना बेकार कभी , अभी बनानी खुद की पहचान बाकी है।  गिर के उठना और सम्भलना , लक्ष्य प्राप्ति की उड़ान बाकी है।  जिंदा रख  अपने सपनो को, अभी पाने के लिए सम्मान बाकी है।  इतनी जल्दी हार मत मान सिकंदर, अभी जीतना सारा जहान बाकी है।  तुम्हें बनाना है आशियाना, पर अभी तो बनाने के लिए मकान बाकी है।  गर्दिश मे सितारें है नहीं हुआ प्रभात,  अभी भानु की लाली पहचान बाकी है।  ना कर अभी दिवस का इंतजार मनुज ,  अभी तो भोर की अज़ान बाकी है।  नदी पार करने में कैसी थकान,  अभी तो पार करने के लिए समुंदर बाकी है।  बाहर की चिंगारी बुझ गयी तो क्या, अभी आग जिगर के अंदर बाकी है।  मत बनाना तू सुशांत सा शांत ,  अपनों के लवो पर लाना मुस्कान बाकी है।  बन तू ज्वाला या बन तूफान सा, तु...

चुनाव की तैयारी है l

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अवधेश कुमार   शीर्षक :- चुनाव की तैयारी है l ----------------------------- पूरे   देश ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में, भयानक फैली हुई कोरोना महामारी हैl लोग नित्य डर रहे हैं आने वाली विपत्ति से, सरकार यहां  कर रहीं चुनाव की तैयारी है l छात्रों में डर, तनाव, गुस्सा और रोस है,  हर तरफ, हर क्षेत्र मे व्याप्त बेरोजगारी है l कोई भूख या बीमारी से मर रहा हो तो मरे,  इन नेताओं को क्या इन्हें कुर्सी प्यारी है l अशिक्षा, पाखंड, साम्प्रदायिकता , जातिवाद, क्षेत्रवाद,व अंधविश्वास लोकतंत्र की बीमारी है l न्यायालय, बुद्धिजीवि प्रेस व मीडिया वाले, सब मौन व गुमसुम है, उन्हें क्या लाचारी है l हम  रहते हैं हैं जिस राज्य मे,जिस देश में,  वो तो लोकतांत्रिक व लोककल्याणकारी है l जनता जनतंत्र के रीढ़ है याद दिला इनको , इस बात को लगता भूल गये अधिकारी हैं l कोई भी दलों को नहीं है जनता की फिक्र, बस इन्हें अपनी-अपनी सत्ता से यारी हैl विपक्ष तुम तो अपना फर्ज सही से निभाओ,  लगता तेरे अंदर भी छुपी हुई गद्दारी है l विशेष राज्य का दर्जा मांगते थे कभी , अब डबल इंजन की सरकार तुम्...

थर्मामीटर का पारा नहीं हूँ!

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अवधेश कुमार  अभी मैं हारा नहीं हूँ l ------------------------ ताप बढ़ने पर चढ़े व घटने पर उतरे,  थर्मामीटर  का पारा नहीं हूँ मैं l प्रज्वलित दिवाकर का दीप्त है मुझमें, यामिनी की अँधियारा नहीं हूँ मैं l थोड़ा सा थक गया हू विषम हालतों से, परंतु अभी भी हारा नहीं हूँ मैं l भिक्षार्थी यायावर सी हो गयी है जीवन, पर बावरा सा बंजारा नहीं हूँ मैं l प्रतिपल तिल तिल भटक रहा हूँ अभी, पर घूमक्कड़ सा आवारा नहीं हूँ मैं l लक्ष्य की प्राप्ति में नाकाम जरूर हूं, लेकिन अभी भी हारा नहीं हूँ मैं l प्रतिकूल परिस्थितियों मे चकनाचूर हो जाऊँ, उतना भी बेबस व बेचारा नहीं हूँ मैं l सब्र का बाँध व हौसलों का काफिला है मुझमें, उतना भी तकदीर का मारा नहीं हूँ मैं l मेरी भी दास्तान सुन ले ऐ ग़म-ए-जिंदगी, फिर से सम्भल जाऊँगा, अभी हारा नहीं हूँ मैं l उफनता हुआ मंदाकिनी का मझधार सा हूँ, शांत समंदर का सौम्य किनारा नहीं हूँ मैं l अडिग, अविचल और गिरकर उठने का आदी हूँ,  मान, मर्यादा, मनोरथ का हत्यारा नहीं हूँ मै l फिर से उठूंगा नव विचारों व लय के साथ, पुनः उत्थान की क्षमता है, अभी हारा नहीं हूँ मैं l रचनाका...

क्या लिखूं ?

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वर्तमान परिस्थिति पर लिखी गयी कविता l   अवधेश कुमार  शीर्षक :- क्या लिखूँ?  क्या लिखूं, व्यंग्य का बाण लिखूँ,  या अनुप्रास की अनल अंगार l या लिखूँ कि हाथ में कलम,  साथ मे क्षमता और हम बेरोजगार l क्या लिखूं, साम्प्रदायिकता, भाषावाद,  या जातिवाद वाली महामारी l या लिखूं M.A, B.Ed,CTET पास,  युवाओं की शिक्षित बेरोजगारी l  क्या लिखूं चमचों की चमचागीरी,  या भक्तों की अनिष्ठ अंधभक्ति l या लिखूं कि वायरस के आगे,  कैसे बेबस है विश्व की महाशक्ति l  निरंतर गिरता हुआ GDP को लिखूं ,  या छलांगें मारता हुआ मंहगाई की दर l बढ़ती खर्च  या घटती  कमाई,  या लिखूं गिरता हुआ शिक्षा की स्तर l पूंजीपतियों की यातना व शोषण,   या लिखूं मैं गरीबों की हाहाकार l लोकतंत्र की सिस्टम की खामियों को,  लिखूं या सर्वव्यापी भ्रष्टाचार l हो रहे निजीकरण, तुष्टीकरण, मशीनीकरण,  व पश्चिमीकरण पे लिखूं अपना विचार l आधुनिकीकरण की उपलब्धियों को लिखूं,  या  लिखूं खुद का खोता हुआ संस्कार l रचनाकार :- अवधेश कुमार English Translation ...

आत्म निर्भर बन

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दिल छू लेने वाली कविता  अवधेश कुमार     शीर्षक :-  आत्मनिर्भर बन  चुप क्यों है अपनी आवाज दबा, अब तो तू सवाल कर l ना सहन कर गलत को, अब तो तू इंकलाब करl ना मिले जवाब, तो खुद जवाब तलाश कर l अपने सीने मे दफन आग को, जलाकर राख कर l कमियों को ना गिन तू, ना उसका तू मलाल कर l जो भी पास है तेरे, तू उससे ही कमाल कर l कुछ तो अच्छा ढूंढ लेना, मन को तू ना उदास कर l तू उठ कुछ करके दिखा, ना खुद को तू बेकार कर सोचता है क्या तू, अपना वक्त ना खराब कर l रास्ते जो ना मिले, तो खुद की राह निर्माण कर l काल के कपाल पर, करके तांडव तू दिखा l आग का दरिया, प्रचंड अग्नि बन कर पार कर l चुप क्यों है अपनी आवाज दबा, अब तो तू सवाल कर ना सहन कर गलत को, अब तो तू इंकलाब कर ना मिले जवाब, तो खुद जवाब तलाश कर अपने सीने मे दफन आग को, जलाकर राख कर  कमियों को ना गिन तू, ना उसका तू मलाल कर जो भी पास है तेरे, तू उससे ही कमाल कर कुछ तो अच्छा ढूंढ लेना, मन को तू ना उदास कर तू उठ कुछ करके दिखा, ना खुद को तू बेकार कर सोचता है क्या तू, अपना वक्त ना खराब कर रास्ते जो ना मिले, तो खुद की राह निर्माण कर काल के ...