मन की बात करने वाले से है मेरी गुजारिश, वो तो कभी मेरे कल के बारे में करे विचार। सरकारी उपेक्षा के सताये, दबाये व मारे है, बिमारीग्रस्त नहीं हुजूर हम है अर्थिक बीमार। आज हम हो गए है कितना बेबस व लाचार। लगता है ऐसा कि शिकारी का हो गया खुद शिकार। कभी दूसरे को दिलाते थे नौकरी व रोजगार। कैसा ये वक़्त आया है, हम ही हो गए बेरोजगार। कोरोना वायरस ने सब कुछ छीन लिया हमारा , जैसे मान मर्यादा, रोजगार, सम्मान और पहचान। स्कूल, कोचिंग, ट्यूशन सब बंद पड़े हैं मार्च से , विकट संकट में है हम सब शिक्षकों की जान। होली के बाद से यु हीं दर बदर भटक रहे हैं हम, एक -एक रुपये कमाने के लिए हम है मोहताज। खीर, पूरी, हलवा,मेवा मिष्ठान सब स्वप्न हो गई, दाल भात भी न मिले रहीं है हमे खाने को आज। पत्नि चिंतित, बच्चे रोये,माता-पिता है बेहाल, मैं कहाँ जाऊँ किसको सुनाऊँ अपनी दीनता। बैंक बैलेंस कब के खाली हो गए बुरा है हाल , शिक्षक की दुःख पर, सरकार को न कोई चिंता। कब से बैठा हूँ करके शिक्षक पात्रता परीक्षा पास, लेकिन अभी त...