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Showing posts from September, 2020

क्रांतिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

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क्रांतिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों में से एक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया नामक स्थान पे हुआ। इनकी मृत्यु 24 अप्रैल, 1974 को चेन्नई) में हुई । ( Note - अंग्रेज़ी मे अभी उपलब्ध नहीं है, 2 दिनों बाद उपलब्ध होगा।)  जीवन परिचय :  हिन्दी के सुविख्यात कवि रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं। दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे और दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनका देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के म...

किसान बिल पर इतना हंगामा क्यों ???

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 किसान बिल पर हाय-तौबा क्यों?  ब्लॉगर - अवधेश कुमार   आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से किसान बिल 2020 के बारे में जानेंगे। यह बिल किसान बिरोधी है लेकिन सरकार तो सिर्फ फायदे बता रहीं है। इसका परिणाम उलझाने वाला होगा। अगर ये बिल किसानों के हित मे था तो कृषि मंत्री त्यागपत्र क्यों दी ? यह तो गौर करने वाली बात है। तीसरा बिल तो जनता का बिरोधी है जिसमें जमाखोरी की बात की गई है। इसमे मंहगाई बढ़ेगी और पूंजीपतियों को फायदा होगा और गरीब महंगाई का सामना करेगा।  इस नये कृषि कानून से बिहार में सबसे अधिक अहित बिहार के किसानों को है।  इनमें से ज्यादातर छोटी जोत की खेती करते हैं और अमूमन लीज या बंटाई पर जमीन लेकर अपनी आय बढ़ाते हैं। इस दौर में भी शहरों में बस गये बिहार के भूस्वामी इन्हें 8 से 12 हजार रुपये प्रति बीघा की दर से अपनी जमीन खेती करने के लिए दे देते हैं। जैसे ही कॉन्टैक्ट फार्मिंग शुरू होगी, इन सबका बेरोजगार होना तय हो जायेगा। कम्पनियां 15 हजार रुपये प्रति बीघा देकर सभी भूस्वामियों की जमीन लीज पर ले लेगी। लोग खुशी खुशी दे भी देंगे। फिर ये लोग क्या करेंगे? मगर अभी इन खेतिहर...

हिन्दी भाषा पर व्यंग

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14 सितंबर 1949 को हिन्दी को राजकीय भाषा घोषित किया गया था इ।स उपलक्ष्य में प्रत्येक 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप दिवस के रूप मे मनाया जाता है।  आप सभी को हिन्दी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं। मेरे द्वारा लिखा गया पहला व्यंग्य है। मेरी अनुरोध है कि आप पूरा अवश्य पढ़े।  हिंदी दिवस हिंदी भाषियों के लिए रोना रोने का मौका बनकर रह गया है।मुझे  तो रोना उन अंधभक्तों पर आता है जो हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व की बात करते हैं। क्योंकि जो हिन्दी भाषा है वह फारसी भाषा का शब्द है। मैं इसका इतिहास लिखूँगा तो पोस्ट बहुत बड़ा हो जाएगा विश्वास न हो तो गूगल पर सर्च करे। जिस प्रकार सप्ताह से हपता हुआ उसी तरह सिंधु से हिन्दू हो गया।  अंधभक्त के साथ कैसी विडम्बना है कि एक तरफ संस्कृति बचाने के लिए लड़ते हैं और दूसरी तरफ निजीकरण का समर्थन कर रहे हैं l उनके लिए आगे कुआ और पीछे खायी वाली स्थिति है। निजीकरण से सबसे बड़ा खतरा हिन्दी, धर्म, साहित्य और संस्कृति की आस्तित्व पर होगा जो अपने ही घर से बेघर हो जाएगी। इंग्लिश मीडियम वाले क्राइस्ट स्कूल इसका प्रमुख उदारहण है।  वैसे मुझे हिन्दी और ...

कोई बकरा नहीं जो हो जाऊँ हलाल ।

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  मैं तो गिरकर उठने का आदी हूं,  फिर मुझे किसी ग़म का कैसा मलाल । शूर सा शौर्य व साहस है मुझमें,  कोई बकरा नहीं जो हो जाऊँ हलाल । बन जा तू आशावादी मुझ सा,  क्यों है तू निराश और बेहाल । पुनरुत्थान की क्षमता जारी रख,  फिर से तू जरूर करेगा कमाल।  मैं तो हूं रहता सजग व सतर्क,  तू भी रख ठीक से अपना ख्याल । मैं हूँ दिल्ली का लौह स्तम्भ सा,  बन जा तू भी चीन की दिवाल। परिस्थितियों का सामना व संघर्ष कर,  निडर बनके खुद को भी सम्भाल।  डरने वाले अक्सर हार जाते हैं,  डर को तू अपने अंदर से निकाल।  मत गिर अपनी ही नजरों मे,  क्यों समझता है स्वय को कंगाल।  जगा दे आत्मशक्ति व विश्वास को,  बन जा तू भी विकट विकराल।  इस आपदा  के बारे में सोच के,  तू ना कर अपना जीवन बदहाल।  महाकाल भक्त है चिंता मत कर ,  कुछ नहीं बिगाड़ सकता है काल। रचनाकार ~ अवधेश कुमार   There is no goat who should become legitimate I am used to falling and getting up  Then what kind of sorrow did I get. I have bravery and courage i...