प्रेमचंद: युग चेतना के महान साहित्यकार

साहित्य समाज का दर्पण है एक साहित्यकार अपने रचनाओं के द्वारा समाज की दशा,रीति रिवाज , परंपरा, मूल्य, संस्कृति, सामाजिक विषमताओं व रूढ़िवादी विचारधाराओं को प्रस्तुत करने का कार्य करता है। साहित्य को पढ़ने और समझने में मेरी गहरी रुचि है । साहित्य मानवीय व्यवहार , सोच, विचार और नजरिया को परिवर्तित करने का क्षमता रखता है।  पाठकों के हृदय पर साहित्यकारों का गहरा प्रभाव पड़ता है । मैं (अवधेश कुमार) खुद की बात करूं तो , वीर रस के कवि रामधारी सिंह, प्रगतिशील विचारधारा के कवि बाबा नागार्जुन (उर्फ वैद्यनाथ मिश्र), सत्ता से सवाल पूछने वाले आधुनिक गजलकार दुष्यंत कुमार, कहानी और उपन्यास की बात करें तो मुंशी प्रेमचंद मेरे प्रिय हिंदी साहित्यकार हैं। 

वैश्विक स्तर की की साहित्यकारों की बात करें तो उसमें इंग्लेंड के William Shakespeare व Charles Dicken, रूस के Leo Tolstoy व Anton Chekhov, जर्मनी के Fyodor Dostoevsky व Frantz Kafka , अमेरिका के Mark Twain, अफ्रीका के Chinua Achebe , और भारत के मुंशी प्रेमचंद और रविन्द्र नाथ टैगोर शामिल है ।

 रविन्द्र नाथ टैगोर को 1913 में नोबेल पुरस्कार दिया था इसलिए उन्हें वैश्विक स्तर पर याद किया जाता है । लेकिन प्रेमचंद का जीवन गरीबी ने गुजरा। "प्रेमचंद के फटे जूते" हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है, जो प्रेमचंद की सादगी, गरीबी और तत्कालीन समाज में बुद्धिजीवियों की उपेक्षा को उजागर करती है, जिसमें फटे जूते उनकी यथार्थवादी जीवनशैली और दिखावे से दूरी का प्रतीक हैं। 

आज मैं मुंशी प्रेमचंद के बारे में लिखने का प्रयास कर रहा हूं। उनके बारे में जितना भी लिखूं कम ही होगा । मुंशी प्रेमचन्द जी को "कथा सम्राट/उपन्यास सम्राट/कलम के सिपाही" के नाम से भी जानते है। उन्होंने पहली बार साहित्य को आम आदमी की आवाज़ बनाया। उनकी कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने वाला साहित्य हैं। वे सिर्फ़ लेखक नहीं, एक संवेदना के वाहक, सामाजिक क्रांति के प्रेरक, और मानवीय चेतना के मिशाल थे। उनकी कहानियाँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे सामाजिक चेतना और बदलाव की प्रेरणा भी देती हैं।

जीवन परिचय

प्रेमचंद, जिनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, हिंदी और उर्दू साहित्य के एक युग प्रवर्तक लेखक रहे। उन्हें "उपन्यास सम्राट" की उपाधि दी गई है, और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन्होंने न केवल हिंदी कथा साहित्य को नई दिशा दी, बल्कि भारतीय समाज के यथार्थ को उसकी गहराई और विडंबनाओं सहित अभिव्यक्त किया। प्रेमचंद का लेखन मानवीय मूल्यों, सामाजिक न्याय, और शोषण के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा देता है। वो पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने कल्पना और रोमांच से हटकर यथार्थवादी लेखन परंपरा का शुरुआत किये जिसमें आम आदमी के जीवन की सच्चाइयों को साहित्य में स्थान दिया। उन्होंने ग्रामीण जीवन, गरीबी, सामाजिक अन्याय, जाति व्यवस्था, स्त्री शोषण और किसान की पीड़ा जैसे विषयों को केंद्र में रखा।

प्रारंभिक जीवन

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो एक डाकघर में क्लर्क थे। प्रेमचंद की माता का नाम आनंदी देवी था। बचपन से ही प्रेमचंद को पढ़ने का शौक था, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों ने उनकी शिक्षा में कई बार बाधा डाली। मात्र सात वर्ष की उम्र में माँ और पंद्रह वर्ष की उम्र में पिता का निधन हो गया।

प्रेमचंद ने कठिन परिस्थितियों में भी पढ़ाई जारी रखी और मिडिल स्कूल पास करने के बाद एक स्कूल में अध्यापक बन गए। इसी दौरान उन्होंने साहित्य पढ़ना शुरू किया और उर्दू में लिखना शुरू किया।

साहित्यिक जीवन की शुरुआत

प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन उर्दू से शुरू हुआ। उन्होंने "नवाब राय" के नाम से उर्दू में लेखन शुरू किया। उनकी पहली कहानी 1907 में प्रकाशित हुई। ब्रिटिश सरकार के विरोधी लेखों के कारण उनकी पुस्तक "सोज़े वतन" जब्त कर ली गई, और उन्हें चेतावनी दी गई। इसके बाद उन्होंने "प्रेमचंद" नाम से हिंदी में लेखन शुरू किया।

प्रमुख उपन्यास 

1. गोदान (1936)

प्रेमचंद का अंतिम और सबसे प्रसिद्ध उपन्यास "गोदान" भारतीय ग्रामीण जीवन की त्रासदी का यथार्थ चित्रण है। इसका नायक होरी एक ईमानदार किसान है जो जीवन भर एक गाय के लिए तरसता है, लेकिन अंत में मर जाते समय उसे भी खो देता है। यह उपन्यास वर्ग संघर्ष, जाति भेद, पूंजीवाद, और शोषण के खिलाफ प्रेमचंद की गहरी समझ को दर्शाता है।

2. गबन (1931)

यह उपन्यास भारतीय मध्यवर्गीय समाज के लालच, सामाजिक दिखावा, और पारिवारिक विघटन की कथा कहता है। मुख्य पात्र रामनाथ अपनी पत्नी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए गबन करता है और अंत में आत्मग्लानि से ग्रस्त हो जाता है।

3. कर्मभूमि (1932)

यह स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसमें प्रेमचंद ने गांधीवाद, सत्याग्रह और सामाजिक समरसता के विचारों को उजागर किया है।

4. सेवासदन (1918)

यह उपन्यास महिलाओं की दशा, सामाजिक बंधनों, और नैतिक पतन पर गहरी टिप्पणी करता है। मुख्य पात्र सुधा एक वेश्या बनती है, लेकिन बाद में समाजसेवा के मार्ग पर चलती है।

5. निर्मला (1927)

बाल विवाह, दहेज और स्त्री पीड़ा को केंद्र में रखकर लिखा गया यह उपन्यास एक मार्मिक कृति है। निर्मला की त्रासदी भारतीय समाज की कुरीतियों का पर्दाफाश करती है।


प्रमुख कहानियां 

मुंशी प्रेमचंद ने लगभग 300 से अधिक कहानियां लिखे हैं। जिसे  मानसरोवर नामक शीर्षक से अलग अलग भागों में प्रकाशित किया गया है। मैं उनकी 10 श्रेष्ठ कहानियां को संक्षिप्त सारांश देने का प्रयास किया हूं। ये कहानियाँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं, जो मानवीय संवेदना, सामाजिक यथार्थ और गहरी नैतिकता से भरपूर हैं:

1. ईदगाह।             मुख्य पात्र: हामिद

सारांश: ईद के दिन 4-5 साल का हामिद अपनी दादी के साथ रहता है और मेला जाता है। जहाँ बाकी बच्चे मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते हैं, वहीं हामिद अपने तीन पैसों से अपनी दादी के लिए एक चिमटा खरीदता है, ताकि रोटियाँ सेंकते समय दादी के हाथ न जलें।

👉 यह कहानी त्याग, बचपन की मासूमियत, और निस्वार्थ प्रेम को उजागर करती है।

2. कफन।  मुख्य पात्र: घीसू और माधव (बाप-बेटा)

सारांश: एक गरीब दलित परिवार की बहू प्रसव के दौरान मर जाती है। बाप-बेटा कफन के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं, लेकिन वह पैसा शराब और पकवान में उड़ा देते हैं।

👉 यह कहानी गरीबी की अमानवीयता, संवेदनहीनता, और सामाजिक व्यवस्था की विडंबना पर तीखा व्यंग्य है।

3. पूस की रात।            मुख्य पात्र: हल्कू

सारांश: हल्कू एक गरीब किसान है, जो ठंडी रात में खेत की रखवाली करने में असमर्थ होता है और सो जाता है। जानवर उसकी फसल नष्ट कर देते हैं। परंतु वह कहता है, "अब मुझे चैन की नींद तो मिली।"

👉 यह कहानी गरीबी व मज़बूरी का मार्मिक चित्रण है।

4. नमक का दरोगा।        मुख्य पात्र: मुंशी वंशीधर

सारांश:  वंशीधर ईमानदार दरोगा है। एक व्यापारी रिश्वत देने की कोशिश करता है, लेकिन वह उसे पकड़ लेता है। व्यापारी उस पर झूठा मुकदमा करता है, लेकिन वंशीधर की ईमानदारी को देखकर न्यायालय उसे पदोन्नत करता है।

👉 यह कहानी ईमानदारी, नैतिक साहस, और सत्यमेव जयते की भावना को दर्शाती है।

5. ठाकुर का कुआँ।                   मुख्य पात्र: गंगी

सारांश: गंगी एक दलित महिला है। उसका पति बीमार है और घर में पानी नहीं है। सवर्णों के कुएँ से पानी लाना अपराध है, लेकिन मजबूरी में वह वहाँ जाती है। पकड़े जाने का डर उसमें लगातार बना रहता है।

👉 यह कहानी जातिगत भेदभाव और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर गहरी चोट करती है।

6. बड़ी बात।               मुख्य पात्र: जुगनू (बालक)

सारांश:  बच्चों के खेल में एक बालक जुगनू महत्त्वहीन भूमिका पाता है लेकिन बाद में अपने साहस और सूझबूझ से खेल को जीत दिलाता है।

👉 यह कहानी बताती है कि साहस, आत्मबल और समझदारी उम्र या पद से बड़ी होती है।

7. बूढ़ी काकी।             मुख्य पात्र: बूढ़ी काकी

सारांश: एक बूढ़ी महिला, जिसे घर वाले अनुपयोगी समझते हैं, भूख से तरसती रहती है। उसकी बहू उससे बुरा व्यवहार करती है, लेकिन एक छोटी लड़की रूपा उसे प्रेम और सम्मान देती है।

👉 यह कहानी वृद्धों की उपेक्षा, संवेदना, और भोजन की महत्ता को उजागर करती है।

8. दो बैलों की कथा  मुख्य पात्र: हीरा और मोती 

सारांश: दो बैल अपने मालिक के लिए समर्पित रहते हैं। जब मालिक उन्हें किसी लालची जमींदार को बेच देता है, तो वे वहां से भाग जाते हैं और वापस लौट आते हैं।

👉 यह कहानी निष्ठा, स्वाभिमान, और पशु संवेदना का प्रतीक बन गई है।

9. सद्गति।                             मुख्य पात्र: दुखी चमार

सारांश: एक दलित व्यक्ति एक ब्राह्मण के लिए लकड़ी काटता है ताकि उसे पूजा के लिए बुलाया जाए, लेकिन काम करते हुए उसकी मृत्यु हो जाती है। ब्राह्मण उसका शव ठिकाने लगाने से भी कतराता है।

👉 यह कहानी धर्म के नाम पर शोषण, जातिवाद, और मानवता की कमी पर प्रहार करती है।

10. सवा सेर गेहूँ।        मुख्य पात्र: शंकर किसान 

 सारांश: एक भोले-भाले किसान शंकर की कहानी है जो एक साधु के भोजन के लिए सवा सेर गेहूँ उधार लेने के बाद धोखे से महाजन के कर्ज जाल में फँस जाता है और बीस साल तक उसकी गुलामी करता है। 

👉यह कहानी साहूकारी व्यवस्था के शोषक और दमनकारी स्वरूप को दर्शाती है, जहाँ गरीब किसानों को किस प्रकार कुचला जाता है, इस पर प्रकाश डाला गया है। 

निष्कर्ष:  प्रेमचंद की कहानियाँ सामाजिक यथार्थ, नैतिकता, करुणा और व्यंग्य से भरपूर होती हैं। उन्होंने अपने लेखन में समाज के उस वर्ग को आवाज दी जिसे कोई नहीं सुनता था।

विचारधारा और लेखन शैली

प्रेमचंद के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता उनका यथार्थवाद है। उन्होंने कल्पना की बजाय जीवन की कटु सच्चाइयों को प्रस्तुत किया। उन्होंने नायकों को महान नहीं बल्कि साधारण बनाया, ताकि आम आदमी अपने को उनमें देख सके।

उनकी भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली होती थी। वे संस्कृतनिष्ठ हिंदी की बजाय खड़ी बोली और लोक भाषा का प्रयोग करते थे, जिससे उनका साहित्य व्यापक जनसमूह तक पहुँचा।

उनकी कहानियों में करुणा, व्यंग्य, और नैतिकता के तत्व पाए जाते हैं। उन्होंने हमेशा समाज के दबे-कुचले वर्गों की आवाज को साहित्य में स्थान दिया।

प्रेमचंद और गांधीवाद

प्रेमचंद महात्मा गांधी के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे। उन्होंने अपने लेखन में सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, और ग्राम विकास जैसे विषयों को प्रमुखता दी। "कर्मभूमि" जैसे उपन्यासों में गांधीवादी आंदोलन का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।

समकालीन साहित्य पर प्रभाव

प्रेमचंद के साहित्य ने आने वाले लेखकों की पीढ़ियों को गहराई से प्रभावित किया। हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में यथार्थवादी साहित्य की नींव उन्हीं ने रखी। बाद में रेणु, नागार्जुन, यशपाल, अमृतलाल नागर जैसे लेखक उनके प्रभाव में लिखते रहे।

पत्रकारिता और संपादन कार्य

प्रेमचंद ने 1930 में 'हंस' नामक मासिक पत्रिका की शुरुआत की। इस पत्रिका में उन्होंने नई सोच, दलित साहित्य, महिला सशक्तिकरण, और ग्रामीण समस्याओं जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी। इसके अलावा उन्होंने 'जमाना', 'माधुरी', 'मर्यादा', आदि पत्रिकाओं में भी संपादकीय लेख लिखे।

व्यक्तित्व और संघर्ष

प्रेमचंद ने साहित्य को कभी व्यवसाय नहीं बनाया। उन्होंने नैतिकता, ईमानदारी, और आत्मसम्मान को हमेशा प्राथमिकता दी। आर्थिक संकट, बीमारी, सामाजिक अवहेलना के बावजूद उन्होंने साहित्य सृजन में कभी विराम नहीं लिया।

उनकी सादगी और दृढ़ता हर साहित्य प्रेमी के लिए प्रेरणास्रोत है। प्रेमचंद का जीवन एक आदर्श लेखक की प्रतिमूर्ति है।

मृत्यु और विरासत

8 अक्टूबर 1936 को प्रेमचंद का निधन हो गया। उस समय वे 'मंगलसूत्र' नामक उपन्यास लिख रहे थे, जो अधूरा रह गया। प्रेमचंद भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका साहित्य आज भी जीवंत है ।

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