नई शिक्षा नीति 2020 - आसान भाषा मे समझिये l


आज हम इस ब्लॉग में हम नई शिक्षा नीति के बारे में जानेंगे  वह भी बिल्कुल सरल और सहज भाषा में। अतः पाठकों से मेरी अपील है कि पूरी जानकारी हेतु इस ब्लॉग को पूरा  अवश्य पढ़ें। 
आजादी के पहले भी शिक्षा नीति में समय-समय पर सुधार होते रहे हैं। और आजादी के बाद कई बार नई शिक्षा नीतियों को लागू किया गया। कुछ सफल हुए और कुछ असफल हो गए। अब हम नई शिक्षा नीति 2020 के बारे में बात करते हैं। इसमें भी कुछ नया नहीं है जो भी पुराने शिक्षा नीतियां थी। उसी नीतियों को समय के अनुसार विकसित करने का प्रयास किया गया। अगर हम तुलनात्मक अध्ययन करें तो महात्मा गांधी के द्वारा जो वर्धा सम्मेलन हुआ था। उससे काफी हद तक मिलता-जुलता है। फर्क यह है कि वह समय अलग था आज का समय अलग है। आज हम डिजिटलाइजेशन के दौर में जी रहे है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकास साथ ही साथ रोजगार का सृजन करना भी शिक्षा व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। 

 जो प्राचीन शिक्षा नीति थी उसी को  विकसित करके प्रकार से नई शिक्षा नीति 2020 का निर्माण किया गया। NEP 2020 का सार। 

1. मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। 

2. 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के  निशुल्क शिक्षा अभियान के तहत उसमें संशोधन करके आयु वर्ग को 3 वर्ष लेकर 18 वर्ष किया गया। यानी अब 18 वर्ष तक सभी को निशुल्क शिक्षा प्राप्त होगी। 

3.  पहले शिक्षा का पैटर्न 10+2+3 था। यानी सरल भाषा में समझे तो पहली से दसवीं तक की पढ़ाई, उसके बाद 2 वर्ष का इंटरमीडिएट और उसके बाद 3 वर्ष का स्नातक। स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 का नया पाठयक्रम संरचना लागू किया जाएगा। जिसमें 3 वर्ष के शिक्षा आंगनवाड़ी में दी जाएगी 3 से लेकर 6 वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों को शामिल किया गया गया। 

4. अब छात्रों को प्रत्येक कक्षा में एग्जाम देने की आवश्यकता नहीं है अब वह केवल कक्षा 3 कक्षा 5 और कक्षा 8 में एक्जाम देंगेl 10वीं और 12वीं की बोर्ड पहले की तरह ही रहेगी। 

5. देश की जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च किया जाएगा अभी वर्तमान में 5 % से भी कम खर्च होती है जबकि विकसित देशों में शिक्षा पर कम से कम 10% से 15% तक किया जाता है। 

6. छठी कक्षा से हैं वोकेशनल कोर्स की शुरुआत की जाएगी। 

7. सेमेस्टर प्रणाली पर जोर दिया जाएगा। छात्र अपनी एसेसमेंट खुद करेंगे उसके बाद अपने मित्र की सहायता से करवाएंगे और अंत में शिक्षक के द्वारा एसेसमेंट किया जाएगा। 

8. स्कूली सिलेबस में खेलों को भी सम्मिलित किया जाएगा साथ ही साथ बालक के कौशल और कलाओं का भी विकास किया जाएगा। 

9. ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा दिया जाएगा साथ ही साथ नए लैब स्थापना की जाएगी। 

10. SC ST और OBC  के छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी। 

11. नई एकल रेगुलेटरी बोर्ड का गठन किया जाएगा।  सरल भाषा में समझे तो दो-तीन बोर्ड की अपेक्षा एक बोर्ड ही काम करेगी। 

12.  3 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों को आरटीई 2009 के अंतर्गत रखा जाएगा। 

13. पांचवी वर्ग तक की शिक्षा क्षेत्रीय भाषा में ही दी जाएगी जैसे उड़िया कन्नड़ पंजाबी तेलुगु बंगाली इत्यादि। 

14. NCF 2005 पर  विशेष ध्यान दिया जाएगा। 

15. आने वाले समय में शिक्षक और छात्रों का अनुपात 1: 30 से कम होगा।

16. नई शिक्षा नीति में कहानी, रंगमंच, सामूहिक पठन पाठन, चित्रों का डिस्प्ले, लेखन कौशलता, भाषा और गणित पर भी जोर होगा।

17. छात्रों को ए आजादी होगी कि वह किसी भी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में एडमिशन ले सकते। 

18. टॉप 100 यूनिवर्सिटीज पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे, इसकी भी योजना तैयार हो रही है। 

19.उच्च शिक्षा संस्थानों को फ़ीस चार्ज करने के मामले में और पारदर्शिता लायी जायेगी। 

20. PHD करने के लिए एमफ़िल (M.Phil) की ज़रूरत नहीं होगी। 

कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को हरी झंडी दे दी है. 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है। HRD मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कहा कि ये नीति एक महत्वपूर्ण रास्ता प्रशस्‍त करेगी। ये नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी। इस नीति पर देश के कोने कोने से राय ली गई है और इसमें सभी वर्गों के लोगों की राय को शामिल किया गया है. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि इतने बडे़ स्तर पर सबकी राय ली गई है। 

वर्तमान स्थिति को समझने के लिए हमे प्राचीन एवं पूर्व मे लागू की गई शिक्षा नीति के बारे में जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य है तभी हम नई शिक्षा नीति को आसानी से समझ सकते हैं। 

स्वतंत्रता पूर्व में भारत की शिक्षा नीतियां। 

1835-  में लॉर्ड मैकाले ने शिक्षा नीति बनाते समय भारत वर्ष को कमजोर करने के लिए संस्कार रहित शिक्षा नीति बनाई, जबकि प्राचीन समय में भारत वर्ष को विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त था। अंग्रेजी शासन में हमारी समृद्ध संस्कृति को नुकसान पहुंचाया गया।

1937 - में गांधीजी ने वर्धा में हो रहे 'अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन' जिसे 'वर्धा शिक्षा सम्मेलन' कहा गया था। उसमें अपनी बेसिक शिक्षा की नयी योजना को प्रस्तुत किया। जो कि मेट्रिक स्तर तक अंग्रेजी रहित तथा उद्योगों पर आधारित थी

1854 - सर चार्ल्स वुड उस समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल’ के अध्यक्ष थे। उन्होंने भारत की भावी शिक्षा के लिये एक विस्तृत योजना बनाई और भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी को 1854 में अपना सुझाव-पत्र भेजा, जिसे ‘वुड का घोषणापत्र’ या ‘वुड्स डिस्पैच’ कहा गया। इसे भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा इसलिये कहा जाता है क्योंकि यह पहला इतना व्यवस्थित, संतुलित, विस्तृत व बहुआयामी शिक्षा प्रस्ताव था जिसने ब्रिटिश शासन की शिक्षा नीति को दिशा दी।

 स्वतंत्र भारत में शिक्षा नीतियों का निर्माण एवं सुधार। 

1948- डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन। 
1952- लक्ष्मणस्वामी मुदलियार की अगुआई में माध्यमिक शिक्षा आयोग बना। 
1964- दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग। 
1968- कोठारी आयोग के सुझावों पर शिक्षा नीति का प्रस्ताव। 
1986- नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू। 
1990- आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति बनी। 
1993- प्रो यशपाल के नेतृत्व में समीक्षा समिति का गठन। 
2005-  राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा ( NCF)। 
2017- नयी शिक्षा नीति का प्रारूप बनाने के लिए कस्तूरीरंगन समिति का गठन। 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि मंत्रालय का मौजूदा नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया जाए।कैबिनेट बैठक में इस पर फैसला हो सकता है। भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निदेशक तत्वों में कहा गया है कि प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाय। 

इससे पहले 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी। 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे। यानी 34 साल बाद देश में एक नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है। 

NCF -2005 के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य किसी बच्चे के स्कूली जीवन को उसके घर, आस-पड़ोस के जीवन से जोड़ना है। इसके लिए बच्चों को स्कूल में अपने वाह्य अनुभवों के बारे में बात करने का मौका देना चाहिए। उसे सुना जाना चाहिए। ताकि बच्चे को लगे कि शिक्षक उसकी बात को तवज्जो दे रहे हैं।

नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। 

नई शिक्षा नीति-2020 की मुख्य बातें

नई शिक्षा नीति में पाँचवी क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी। हालांकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। 
साल 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% जीईआर (Gross Enrolment Ratio) के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फ़ॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है। 
अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा। इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापनी की जाएगी। 

स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 का नया पाठयक्रम संरचना लागू किया जाएगा जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें अब तक दूर रखे गए 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है। जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है। 

नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी। इसके तहत छात्रों की शुरुआती स्टेज की पढ़ाई के लिए तीन साली की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है। अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पाँचवी क्लास को रखा गया है। 
इसके बाद मिडिल स्कूल याना 6-8 कक्षा में सब्जेक्ट का इंट्रोडक्शन कराया जाएगा। सभी छात्र केवल तीसरी, पाँचवी और आठवी कक्षा में परीक्षा देंगे। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पहले की तरह जारी रहेगी। लेकिन बच्चों के समग्र विकास करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा। एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र 'परख (समग्र विकास के लिए कार्य-प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) एक मानक-निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा। 

पढ़ने-लिखने और जोड़-घटाव (संख्यात्मक ज्ञान) की बुनियादी योग्यता पर ज़ोर दिया जाएगा। बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान की प्राप्ति को सही ढंग से सीखने के लिए अत्यंत ज़रूरी एवं पहली आवश्यकता मानते हुए 'एनईपी 2020' में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा 'बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन' की स्थापना किए जाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है। 

एनसीईआरटी 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (एनसीपीएफ़ईसीसीई) के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित करेगा। 
स्कूलों में शैक्षणिक धाराओं, पाठ्येतर गतिविधियों और व्यावसायिक शिक्षा के बीच ख़ास अंतर नहीं किया जाएगा। 

सामाजिक और आर्थिक नज़रिए से वंचित समूहों (SEDG) की शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा। 

शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय प्रोफ़ेशनल मानक (एनपीएसटी) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक विकसित किया जाएगा, जिसके लिए एनसीईआरटी, एससीईआरटी, शिक्षकों और सभी स्तरों एवं क्षेत्रों के विशेषज्ञ संगठनों के साथ परामर्श किया जाएगा। 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इसका मतलब है कि रमेश पोखरियाल निशंक अब देश के शिक्षा मंत्री कहलाएंगे। 

जीडीपी का छह फ़ीसद शिक्षा में लगाने का लक्ष्य जो अभी 4.43 फ़ीसद है। 

नई शिक्षा का लक्ष्य 2030 तक 3-18 आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है। 

छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। इसके लिए इसके इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी।इसके अलावा म्यूज़िक और आर्ट्स को बढ़ावा दिया जाएगा. इन्हें पाठयक्रम में लागू किया जाएगा। 

उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा।लॉ और मेडिकल शिक्ष को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा।

एचईसीआई के चार स्वतंत्र वर्टिकल होंगे- विनियमन के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (एनएचईआरसी), मानक निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी), वित पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) और प्रत्यायन के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी)।

उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फ़ीसद GER (Gross Enrolment Ratio) पहुंचाने का लक्ष्य है. फ़िलहाल 2018 के आँकड़ों के अनुसार GER 26.3 प्रतिशत है. उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी।

पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम लागू किया गया है. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं।आज की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो आपके पास कोई उपाय नहीं होता, लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफ़िकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी. इससे उन छात्रों को बहुत फ़ायदा होगा जिनकी पढ़ाई बीच में किसी वजह से छूट जाती है।

नई शिक्षा नीति में छात्रों को ये आज़ादी भी होगी कि अगर वो कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाख़िला लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकते हैं और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं। 

उच्च शिक्षा में कई बदलाव किए गए हैं. जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे। 

लेकिन जो रिसर्च में जाना चाहते हैं वो एक साल के एमए (MA) के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी (PhD) कर सकते हैं. उन्हें एमफ़िल (M.Phil) की ज़रूरत नहीं होगी। 

शोध करने के लिए और पूरी उच्च शिक्षा में एक मज़बूत अनुसंधान संस्कृति तथा अनुसंधान क्षमता को बढ़ावा देने के लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (एनआरएफ़) की स्थापना की जाएगी। एनआरएफ़ का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को सक्षम बनाना होगा। एनआरएफ़ स्वतंत्र रूप से सरकार द्वारा, एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा। 

उच्च शिक्षा संस्थानों को फ़ीस चार्ज करने के मामले में और पारदर्शिता लानी होगी। 

एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य विशिष्ट श्रेणियों से जुड़े हुए छात्रों की योग्यता को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाएगा। छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले छात्रों की प्रगति को समर्थन प्रदान करना, उसे बढ़ावा देना और उनकी प्रगति को ट्रैक करने के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल का विस्तार किया जाएगा। निजी उच्च शिक्षण संस्थानों को अपने यहां छात्रों को बड़ी संख्या में मुफ़्त शिक्षा और छात्रवृत्तियों की पेशकश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। 

ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किए जाएंगे। वर्चुअल लैब विकसित की जा रही है और एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फ़ोरम (NETF) बनाया जा रहा है। 

हाल ही में महामारी और वैश्विक महामारी में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सिफ़ारिशों के एक व्यापक सेट को कवर किया गया है, जिससे जब कभी और जहां भी पारंपरिक और व्यक्तिगत शिक्षा प्राप्त करने का साधन उपलब्ध होना संभव नहीं हैं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के वैकल्पिक साधनों की तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिए, स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों को ई-शिक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एमएचआरडी में डिजिटल अवसंरचना, डिजिटल कंटेंट और क्षमता निर्माण के उद्देश्य से एक समर्पित इकाई बनाई जाएगी। 

सभी भारतीय भाषाओं के लिए संरक्षण, विकास और उन्हें और जीवंत बनाने के लिए नई शिक्षा नीति में पाली, फ़ारसी और प्राकृत भाषाओं के लिए एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई), राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना करने, उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत और सभी भाषा विभागों को मज़बूत करने और ज़्यादा से ज़्यादा उच्च शिक्षण संस्थानों के कार्यक्रमों में, शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा/ स्थानीय भाषा का उपयोग करने की सिफ़ारिश की गई है। 

ये हो सकते हैं सुधार

सिंगल रेगुलेटर- मानव संसाधन विकास मंत्रालय यूजीसी और एआईसीटीई को एक साथ मिलाने की तैयारी कर रहा है । इससे एक रेगुलेटरी बॉडी बनाई जाएगी और मौजूदा रेगुलेटरी बॉडी को नए रोल में लगाया जाएगा। पूरे उच्च शिक्षा के लिए नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन किया जाएगा। 

बोर्ड परीक्षा का पुनर्गठन- नई शिक्षा नीति में बोर्ड परीक्षाओं को लेकर बड़ा बदलाव किया जा सकता है। छात्रों के मुताबिक कोर्स चुनने की आजादी हो सकती है। स्किल पर खास ध्यान दिया जाएगा।सबसे बड़ा बदलाव परीक्षा के तौर-तरीकों में किया जा सकता है।ऐसा हो सकता है कि छात्रों को साल में परीक्षा के लिए दो या तीन बार मौका मिले ताकि वे दबाव से खुद को बचा सकें। बोर्ड की एक परीक्षा के बजाय सेमेस्ट प्रणाली की सलाह दी जा सकती है।

आरटीई (RTE) एक्ट में बदलाव ?

6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) बनाया गया था। इसमें मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। इस कानून के तहत हर स्कूल के प्रबंधन को इस श्रेणी के छात्रों के लिए कुछ सीटें रिजर्व रखनी होती हैं।अब सरकार इसमें प्री-प्राइमरी एजुकेशन को भी शामिल कर सकती है। ग्रेड 9-12 तक भी मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान हो सकता है। इस हिसाब से यह 18 साल तक लागू हो सकता है।

क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर- क्लासिकल लैंग्वेज पर सरकार जोर दे सकती है. स्कूलों में संस्कृत के अलावा उड़िया, तेलुगू, तमिल, पाली और मलयालम भाषाओं को शामिल किया जा सकता है। यह प्रावधान क्लास 6 से 8 तक किया जा सकता है। इसके अलावा देश में वैश्विक विश्वविद्यालयों के कैंपस खोले जाने की इजाजत दी जा सकती है। 

रेगुलेटर का नया नाम

मानव संसाधन विकास मंत्रालयन ने रेगुलेटर बनाने का प्लान पहले ही तैयार कर लिया है। इस रेगुलेटर का नाम होगा- नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी (एनएचईआरए) या हायर एजुकेशन कमिशन ऑफ इंडिया। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण 1986 में किया गया था और 1992 में इसमें कुछ बदलाव किए गए थे। इसके बाद तीन दशक गुजर गए हैं, लेकिन इसमें कुछ बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। 

केंद्र सरकार का मानना है कि शिक्षा के क्षेत्र में बड़े स्तर पर बदलाव की जरूरत है ताकि भारत दुनिया में ज्ञान का सुपरपावर बन सके। इसके लिए सभी को अच्छी क्वालिटी की शिक्षा दिए जाने की जरूरत है ताकि एक प्रगतिशील और गतिमान समाज बनाया जा सके। प्राथमिक स्तर पर दी जाने वाली शिक्षा की क्वालिटी सुधारने के लिए एक नए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का फ्रेमवर्क तैयार करने पर जोर है। इस फ्रेमवर्क में अलग-अलग भाषाओं के ज्ञान, 21वीं सदी के कौशल, कोर्स में खेल, कला और वातारण से जुड़े मुद्दे भी शामिल किए जाएंगे। 

खेल भी होगा शामिल?

शिक्षा में खेल को जहां तक शामिल करने की बात है तो खेल मंत्री किरण रिजिजू ने अभी हाल में कहा था कि देश की नई शिक्षा नीति में खेल पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगे। रिजिजू ने कहा, ‘भारत की नई शिक्षा नीति को अभी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं किया गया है। लेकिन यह अंतिम चरण पर है। बातचीत के दौरान मेरा मंत्रालय पहले ही पुरजोर तरीके से अपना पक्ष रख चुका है। रिजिजू के मुताबिक, राष्ट्रीय खेल शिक्षा बोर्ड के गठन के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। 

देश में शिक्षा के बदल जाएंगे मायने। 

नई शिक्षा नीति के मुताबिक, अब 3 साल से 18 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंदर लाया जाएगा। आने वाले समय में शिक्षक और छात्रों का अनुपात 1:30 होगा। नई शिक्षा नीति में कहानी, रंगमंच, सामूहिक पठन पाठन, चित्रों का डिस्प्ले, लेखन कौशलता, भाषा और गणित पर भी जोर होगा। इस नई शिक्षा नीति के तहत देश में शिक्षा के मायने को बदला जाएगा। इससे न सिर्फ युवाओं को शिक्षा के नए अवसर मिलेंगे, बल्कि रोजगार प्राप्त करने में भी आसानी होगी। 

नई शिक्षा नीति के तहत सरकार युवा इंजीनियरों को इंटर्नशिप का अवसर देने के उद्देश्य से शहरी स्थानीय निकायों के लिए एक कार्यक्रम शुरू करने की योजना बना रही है। साथ ही राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव लाया जा रहा है. वहीं टॉप 100 यूनिवर्सिटीज पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे, इसकी भी योजना तैयार हो रही है। 

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कहा है कि हमारी जो नई शिक्षा नीति आ रही है, वह काफी कुछ इन बातों का समाधान करेगी। शिक्षा नीति में सरकार ने हायर एजुकेशन को बढ़ावा देने की बात कही गई है. इसके साथ ही युवाओं को हायर एजुकेशन लेना पहले के मुकाबले काफी आसान हो जाएगा। 

अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा की नई शिक्षा नीति 2020 सफल हो पाएगी कि नहीं अगर अभी वर्तमान की बात करें तो ncf-2005 पूरी तरीके से लागू नहीं है। कागजी तौर पर आंकड़े कुछ और बताते हैं और जमीनी तौर पर हकीकत कुछ और है।  शिक्षा के क्षेत्र में हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत में शिक्षा व्यवस्था उतनी कारगर नहीं है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है। रोजगार का सृजन नहीं है। शिक्षित बेरोजगारी की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। शिक्षा और स्वास्थ यह दोनों क्षेत्रों में भारत को सुधार करने की आवश्यकता है आज की युवा पीढ़ी भी धर्म को ज्यादा तवज्जो देते हैं ना की शिक्षा को। 

ब्लॉगर :- अवधेश कुमार 
Today in this blog we will learn about the new education policy, that too in a very simple and easy language. 
Even before independence, education policy has been improving from time to time. 

 The new education policy 2020 was developed by developing the same ancient education policy. 

1. Ministry of Human Resource Development has been renamed as Ministry of Education. 

2. Under the free education campaign for the age group of 6 to 14 years, it was amended to increase the age group from 3 years to 18 years. 

3. Earlier the pattern of education was 10 + 2 + 3. 

4. Now students are not required to give exams in every class, now they will give only exams in class 3, class 5 and class 8. The board of 10th and 12th will remain the same as before. 

5. 6% of the country's GDP will be spent on education, currently less than 5% is spent while in developed countries at least 10% to 15% is spent on education. 

6. Vocational courses will be started from sixth grade. 

7. Semester system will be emphasized. 

8. Sports will also be included in the school syllabus as well as the skills and arts of the child will also be developed. 

9. Online education will be promoted as well as new lab set up. 

10. Scholarships will be provided to encourage students of SC ST and OBC. 

11. A new single regulatory board will be formed. 

12. Children from 3 years to 18 years will be placed under RTE 2009. 

13. Education up to fifth class will be imparted in regional language like Oriya Kannada Punjabi Telugu Bengali etc. 

14. NCF 2005 will receive special attention. 

15. The ratio of teacher to students will be 1:30 in the coming time.

16. The new education policy will also emphasize on storytelling, theater, group reading, display of pictures, writing skills, language and mathematics.

17. Students will have the freedom to skip any course and take admission in other courses. 

18. Top 100 universities will be started completely online education programs, plans are also being prepared. 

19. More transparency will be brought in the matter of charging fees to higher education institutions. 

20. No M.Phil will be required to do PHD. 

The Cabinet has approved the New Education Policy 2020. 

In order to understand the current situation, it is necessary to get information about the education policy implemented in ancient and past, only then we can easily understand the new education policy. 

Education policies of India in pre-independence period. 

In 1835- Lord Macaulay, while making the education policy, made a riteless education policy to weaken the year of India, whereas in ancient times the year of India was given the status of world guru. 

In 1937 - Gandhiji called the 'All India National Education Conference' in Wardha which was called 'Wardha Education Conference'. 

1854 - Sir Charles Wood was the Chairman of the 'Board of Control' of the British East India Company at that time. 

 Formulation and reform of education policies in independent India. 

1948 - University Education Commission formed under the chairmanship of Dr. Radhakrishnan. 
1952- Secondary Education Commission formed under the leadership of Lakshmanaswamy Mudaliar. 
1964 - Education Commission headed by Daulat Singh Kothari. 
1968- Proposal of education policy on the suggestions of Kothari Commission. 
1986 - New National Education Policy implemented. 
1990- A review committee formed under the chairmanship of Acharya Ramamurthy. 
1993- Review committee formed under the leadership of Prof. Yashpal. 
2005- National Curriculum Framework (NCF). 
2017- Kasturirangan committee formed to draft new education policy. 

The Ministry of Human Resource Development has also proposed that the current name of the ministry be changed to the Ministry of Education. It can be decided in the cabinet meeting. 

Earlier in 1986, the education policy was implemented. 

According to NCF-2005, the goal of education is to connect the school life of a child to the life of his home, neighborhood. 

Many major changes have been made in the new education policy, from school education to higher education. 

Highlights of New Education Policy-2020

In the new education policy, it has been said to keep the medium of education in the mother tongue, local or regional language up to the fifth class. 
By the year 2030, education for all has been targeted at the secondary level with 100% Gross Enrolment Ratio in school education. 
Two crore children who are currently away from school will be brought back into the mainstream. 

A new curriculum structure of 5 + 3 + 3 + 4 will be implemented in place of the 10 + 2 structure of the school curriculum, which is for children aged 3-8, 8-11, 11-14, and 14-18 respectively. 

The new system will have 12 years of schooling and three years of anganwadi with pre-schooling. 
After this, introduction of the subject will be done in middle school ie 6-8 class. 

Emphasis will be laid on the basic merit of reading-writing and addition-subtraction (numerical knowledge). 

NCERT will develop a National Curriculum and Educational Framework for Early Childhood Care and Education (NCPFECCE) for children up to the age of 8 years. 
There will be no distinct distinction between educational streams, extra-curricular activities and vocational education in schools. 

Special emphasis will be laid on the education of disadvantaged groups (SEDGs) from social and economic perspectives. 

The National Professional Standards for Teachers (NPST) will be developed by the National Council for Teacher Education by the year 2022, for which consultation will be held with NCERT, SCERT, teachers and specialist organizations of all levels and fields. 

The Ministry of Human Resource Development has been renamed as Ministry of Education. 

The target of spending six percent of GDP in education, which is now 4.43 percent. 

The goal of the new education is to provide quality education to every child aged 3-18 by 2030. 

Vocational courses will be started from Class VI. 

There will be a single regulator for higher education. The Higher Higher Education Commission (HECI) will be set up as a single most important comprehensive body for all higher education except law and medical education.

HECI will have four independent verticals - National Higher Education Regulatory Council (NERC) for regulation, General Education Council (GEC) for standard determination, Higher Education Grant Council (HEGC) for funding and National Accreditation Council for Accreditation (NAC) ).

There is a target of delivering 50 percent GER (Gross Enrolment Ratio) in higher education by 2035. 

For the first time multiple entry and exit systems have been implemented. 

In the new education policy, students will also have the freedom that if they want to skip a course and join another course, then they can take a break from the first course for a certain time and join the second course. 

Many changes have been made in higher education. 

But those who want to go into research can do PhD directly after a four-year degree program with a one-year MA. 

The National Research Foundation (NRAF) will be set up as an apex body to conduct research and to promote a strong research culture and research capacity throughout higher education. 

Higher education institutions have to bring more transparency in terms of charging fees. 

Efforts will be made to encourage the qualification of students belonging to SC, ST, OBC and other specific categories. 

E-courses will be developed in regional languages. 

The recent increase in epidemics and global epidemics has resulted in covering a broad set of recommendations to promote online education, making it possible to use traditional and personalized education whenever and wherever possible. To ensure the preparation of alternative means of quality education, a dedicated unit will be created at MHRD with the objective of digital infrastructure, digital content and capacity building to meet the needs of both school and higher education e-education. 

The new education policy to preserve, develop and make all the Indian languages ​​more vibrant includes an Indian Institute of Translation and Interpretation (IITI) for Pali, Persian and Prakrit languages, setting up of a national institute, Sanskrit in higher educational institutions and It has been recommended to strengthen all the language departments and to use mother tongue / vernacular as a medium of instruction in programs of maximum educational institutions. 

These can be improved

Single Regulator - Ministry of Human Resource Development is preparing to merge UGC and AICTE together. 

Reorganization of Board Examinations - A big change can be made in the new education policy regarding board exams. 

Changes in RTE Act?

The Right to Education Act (RTE) was enacted for children aged 6 to 14 years. 

Emphasis on regional languages ​​- Classical language can be emphasized by the government. 

New name of regulator

The Ministry of Human Resource Development has already prepared a plan to make the regulator. 

The central government believes that there is a need for massive changes in the field of education so that India can become a superpower of knowledge in the world. 

Will the game also be included?

As far as the inclusion of sports in education is concerned, Sports Minister Kiran Rijiju recently said that sports will be part of the curriculum in the country's new education policy. 

Meaning of education will change in the country. 

According to the new education policy, now children from 3 years to 18 years will be brought under the Right to Education Act, 2009. 

Under the new education policy, the government is planning to launch a program for urban local bodies with the aim of giving internship opportunity to young engineers. 

Union Human Resource Development Minister Ramesh Pokhriyal 'Nishank' has said that our new education policy is coming, it will solve many things. 

Now it will tell the time to come that if the new education policy 2020 will be successful or not, if we talk about the present then ncf-2005 is not fully implemented. 

Blogger: - Awadhesh Kumar 

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